संसाधन का अर्थ
प्रकृति के वे सभी पदार्थ या वस्तुएँ जो मानवजीवन की परिसंपत्ति (assets) बन जाएँ, संसाधन ( resources) कहलाती है। दूसरे शब्दों में, पर्यावरण के वे सारे पदार्थ जो मानवजीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति तथा सुख-सुविधा प्रदान करने के लिए उपयोगी हो, संसाधन है। ये अवयव प्रकृति में विभिन्न रूपों में पाए जाते हैं।
मानव-एक संसाधन के रूप में
मानव शरीर स्वयं भी सबसे बड़ा संसाधन है, क्योंकि इससे जीवन के अनेक कार्य किए जाते है; जैसे—बोझा ढोना, कार्यालय का काम आदि। मानव स्वयं ही अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अपने शरीर और अपनी विभिन्न तकनीकों का उपयोग करता है तथा प्रकृति की अन्य वस्तुओं का भी उपयोग करने के लिए अपनी कार्यात्मकता, अर्थात कार्य करने की योग्यता का विकास करता है। मानवीय क्रियाकलाप सर्वाधिक महत्त्व के है। मानव न रहे तो सारे पदार्थ या धन यों ही पड़े रह जाएंगे। अपने अनुपम साहस, अपितु दुःसाहस, पराक्रम, शौर्य, संघर्षशीलता, ज्ञान, विलक्षण प्रतिभा, जिज्ञासा और सूझ-बूझ, अन्वेषण करने की तीव्र उत्कंठा इत्यादि गुणों के कारण मनुष्य सभी प्रकार के संसाधनों में सर्वोच्च स्थान रखता है। यह स्वयं संसाधन होते हुए भी संसाधनों का उपभोक्ता भी है।
मानव-सभी प्रकार के संसाधनों के निर्माता के रूप में
संसाधन के रूप में किसी पदार्थ का अस्तित्व उसकी उपयोगिता या उपयोगी कार्य/संक्रिया (function/operation) पर निर्भर करता है। कोई पदार्थ जब तक जीवन के लिए उपयोगी सिद्ध नहीं होता तब तक वह संसाधन नहीं कहलाता।
छोटानागपुर पठार के खनिज भंडार का युगों तक कोई महत्त्व न था, अतः वे खनिज पदार्थ संसाधन न बन पाए। किंतु, जब खनिजों का महत्त्व समझा जाने लगा और लोगों ने अपनी कुशलता का प्रदर्शनकर उनका निष्कासन आरंभ किया तथा उपयोग करने लगा तब वे खनिज संसाधन बन गए। इन खनिजों ने छोटानागपुर क्षेत्र को आर्थिक विकास का सुअवसर प्रदान किया।
प्रकृति भौतिक वातावरण
मानव
तकनीकी
शिक्षण संस्थाएँ
चित्र 1.1 प्रकृति, तकनीकी और शिक्षण संस्थाओं के केंद्र में मानव
इसी तरह, पश्चिमी घाट के पश्चिमी भाग में जोग जलप्रपात (Jog Falls) युगों तक जल की धारा बहाता रहा, किंतु जब शक्ति के विकास में उसका उपयोग जलविद्युत उत्पादन के लिए किया जाने लगा तब वह संसाधन के रूप में उभर आया। नदियाँ तभी संसाधन बन पाती है जब मानव उनका उपयोग सिचाई में, जलविद्युत उत्पादन में, मत्स्योद्यम में, जल यातायात में और ऐसी ही अनेक आर्थिक क्रियाओं में करने लगता है। भूगोलवेत्ता जिम्मरमैन ने ठीक ही कहा था कि संसाधन हुआ नहीं करते, बना करते हैं।
संसाधनों का महत्त्व
सारे विश्व में अनेक पदार्थ बिखरे पड़े है। मानव पहले उनका पता लगाता है, फिर वह अपनी बुद्धि, प्रतिभा, क्षमता, तकनीकी ज्ञान और कुशलता से अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए, अपने आर्थिक विकास के लिए, उनके उपयोग की योजना बनाता है और उनका उपयोग करता है। उपयोग में लाकर ही वह उन्हें संसाधन बना पाता है। मनुष्य के आर्थिक विकास के लिए संसाधनों की उपलब्धि अत्यावश्यक है। संसाधनों का महत्त्व इसी तथ्य से स्पष्ट होता है कि इनकी खोज और प्राप्ति के लिए ही मनुष्य कठिन से कठिन परिश्रम करता है। दुर्गम मार्गों पर चलकर दुःसाहसिक यात्राएँ करता है। विश्व के प्रायः सभी युद्ध इन्हीं संसाधनों को पाने या छीनने के लिए हुए है।
संसाधनों की परिभाषा
संसाधन को कई रूपों में पारिभाषित किया जा सकता है। मनुष्य अपने जीवन को सुखद समृद्ध बनाने तथा अपने आर्थिक विकास
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