विज्ञान की वह शाखा जिसमें माता-पिता तथा संतान के
समान या असमान गुणों का अध्ययन किया जाता है अनुवंशिकी कहलाता है और संतति में पैतृक लक्षणों के संचरण
को अनुवंशिकता कहते हैं एक पीढ़ी
से दूसरी पीढ़ी में संचरित होने वाले गुण अनुवंशिक लक्षण कहलाते हैं।
ग्रेगर जोहन्न मेंडल:- अनुवंशिकता के नियमों का अध्ययन सर्वप्रथम ऑस्ट्रिया
के एक मठ के पादरी ग्रेगर मेंडल ने किया था
उन्होंने मटर के पौधे पर अनुवंशिकता के प्रयोग किए
और वंशागति के नियम प्रतिपादित किए । इसलिए ग्रेगर मेंडल को अनुवंशिकता का पिता
या जनक कहा जाता है।
ग्रेगर मेंडल के वंशागति के नियम:-
मेंडल ने अपने अनुसंधान में केवल मटर के पौधे को
चुना क्योंकि उनमें अनेक प्रकार के विपरीत गुण होते हैं।
A. एक संकर क्रॉस (Monohybrid Cross)
जब दो पौधों में केवल एक गुण के आधार पर संकरण
कराया जाता है तो उसे एक संकरीय क्रॉस कहते हैं मेंडल ने शुद्ध लंबा(TT) तथा शुद्ध बौना (tt) पौधे में क्रास कराया जिसके परिणाम इस प्रकार हैं।
फिनोटाइप अनुपात : : 3:1
लंबा:
बौना
जीनोटाइप अनुपात: :1:2:1
शुद्ध लंबा: अशुद्ध लंबा :शुद्ध बौना
इस क्लास के आधार पर मेंडल ने निम्न नियम प्रतिपादित
किए:-
1. प्रभाविता का
नियम (law of Dominances)
जब दो विपरीत एलील किसी जीवधारी में से एक साथ आते
हैं तब उनमें से केवल एक बाहरी रूप से दिखाई पड़ता है और दूसरा दबा हुआ रहता है
दिखाई देने वाले को प्रभावी गुण एवं नहीं दिखाई देने वाले को अप्रभावी गुण कहते हैं और अप्रभावी गुण अपने आप को F2 पीढ़ी में प्रदर्शित
करता है।
2. पृथक्करण का
नियम (Law of Segregation)
जब विपरीत लक्षण के जोड़े को क्रास कराते हैं तो
युग्मक बनते समय एक जोड़ी के एलील एक दूसरे
से अलग हो जाते हैं। अतः प्रत्येक युग्मक में दो में से केवल एक एलील रहता है । यह युग्मक अपने में शुद्ध रहता है, इसलिए इस नियम को युग्मकों के शुद्धता का नियम भी
कहते हैं।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
I. सही उत्तर का संकेताक्षर (क, ख, ग या घ) लिखें।
1. किसी जीव की जीनी संरचना कहलाता है
(क) लक्षणप्ररूप या फेनोटाइप (ख) जीनप्ररूप या जीनोटाइप
(ग) आनुवंशिकी (घ) विभिन्नता
2. मेंडल ने अपने प्रयोग के लिए बगीचे में उगाए जानेवाले
किस पौधे का चयन किया?
(क) साधारण मटर (ख) उड़हुल
(ग) गुलाब (घ) शहतूत
3. जीवविज्ञान की वह शाखा जिसके अंतर्गत विभिन्नता तथा
आनुवंशिकता का अध्ययन किया जाता है, कहलाता है
(क) जीवाश्मविज्ञान (ख) भ्रूणविज्ञान
(ग) जीवविज्ञान (घ) आनुवंशिकी
4. अफ्रीकी मानव का सबसे निकट संबंधी है
(क) चिंपैंजी (ख) गोरिल्ला
(ग) बंदर (घ) गिलहरी
5. पक्षी तथा तितली के पंख हैं:-
(क) समजात अंग (ग) अवशेषी अंग
(ख) असमजात अंग (घ) इनमें कोई नहीं
I. रिक्त स्थानों
की पूर्ति करें।
1. एक ही जाति
के विभिन्न सदस्यों में पाए जानेवाले अंतरों को विभिन्नता कहते हैं।
2. मेंडल के
एकसंकर संकरण के प्रयोग से प्राप्त लक्षणप्ररूपी 3:1 अनुपात है।
3. रेडियो कार्बन काल निर्धारण एक जीवाश्म
की आयु के निर्धारण की एक वैज्ञानिक विधि है।
4. जीवों के
किसी जटिल अंग की उत्पत्ति अचानक नहीं, बल्कि अनगिनत पीढ़ियों में क्रमिक विकास के द्वारा हुई है।
5. ऑर्कियोप्टेरिक्स
नामक जीवाश्म में सरीसृप तथा एवीज दोनों के गुण पाए जाते हैं।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
1. कोशिका में जीन कहां अवस्थित होते हैं?
उत्तर:- डीएनए के क्रियात्मक खंड गुणसूत्र में.
2. विभिन्नता के दो
मुख्य का प्रकार कौन-कौन से हैं?
उत्तर:- जन्निक
तथा कायिक
3. पीढ़ी दर पीढ़ी वंशा गत होकर संचित होने वाली विभिन्न
ता क्या कहलाती है?
उत्तर:- जननी क या अनुवंशिक विभिन्नता
4. ऐसे अनुवंशिक गुण या लक्षण जो अस्पष्ट रुप से दिखाई
देते हैं क्या कहलाते हैं?
उत्तर:- लक्षण
प्रारूप या फेनोटाइप
5. अनुवंशिकी का पिता किसे कहा जाता है?
उत्तर:- ग्रेगर जॉन मेंडल को
6. मेंडल ने अपने प्रयोग के लिए किस पौधे का चयन किया
उसका वैज्ञानिक नाम क्या है?
उत्तर:- मटर , पिसोम सतिवम ( Pisum
Sativum)
7. मेंडल के प्रयोग एक संकर संकरण से प्राप्त जीन
प्रारूप अनुपात कितना है?
उत्तर:- 1:2:1
8. मेंडल के प्रथम नियम क्या कहलाता है?
उत्तर:- पृथक्करण
का नियम
9. अनुवंशिक विभिन्नता के दो मुख्य स्रोत कौन-कौन से हैं?
उत्तर:- उत्परिवर्तन तथा अनुवंशिक पुनर्योग
10.किसी जाति विशेष के एक समष्टि या आबादी में स्थित
समस्त जीन क्या कहलाता है ?
उत्तर:- जीन कोश
11. जीव की उत्पत्ति के ठीक पहले पृथ्वी का वातावरण
अपचायक था उपचायक?
उत्तर:- अपचायक
Reducing
12. उपार्जित लक्षणों के वंशा गति द्वारा जैव विकास की
व्याख्या किसने की थी?
उत्तर:- लामार्क
13. प्राकृतिक चुनाव द्वारा प्राणियों के विकास का
सिद्धांत किसने दिया था?
उत्तर:- चार्ल्स रॉबर्ट डार्विन
14. जीवाश्म की आयु निर्धारण की एक वैज्ञानिक विधि का नाम
बताएं?
उत्तर:- रेडियो कार्बन काल निर्धारण विधि
15. जीवों का वह गुण जो उसके अपने जनको अथवा अपने ही जाति
के अन्य सदस्यों के उसी गुण के मूल स्वरूप से विभिन्नता दर्शाता है, क्या कहलाता है?
उत्तर:- विभिन्नता
16. जीवों के शरीर में होने वाली वैसी विभिन्नता जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में वंशानुगत नहीं होते हैं क्या कहलाती हैं ?
उत्तर - कायिक
विभिन्नता
17. मेंडल के अनुवंशिकी के प्रयोग में f1 पीढ़ी के उन
पौधों को जिनमें जनक पौधों के दोनों विपरीत गुण मौजूद थे क्या कहा गया?
उत्तर - प्रथम संतति
18. मेंडल के एक संकर संकरण का के प्रयोग के फल स्वरुप F2 पीढ़ी में
उत्पन्न पौधों में लक्षण प्रारूप अनुपात क्या था?
उत्तर - तीन अनुपात एक
(3:1)
19. मेंडल के द्वारा मटर के पौधे पर किए गए अनुवंशिकी के प्रयोग में बौनापन किस प्रकार का गुण था
प्रभावी या अप्रभावी?
उत्तर:- प्रभावी
20. मनुष्य में पाए जाने वाले 23 जोड़ी क्रोमोसोम
में 22 जोड़ी क्रोमोसोम एक ही प्रकार के होते हैं, क्या कहलाते हैं?
उत्तर - ऑटोसोम और एक
जोड़ी लिंग क्रोमोसोम (XY)
21. जीव विज्ञान की वह शाखा जिसमें जीव की उत्पत्ति तथा
उसके पूर्वजों का इतिहास तथा समय-समय पर उनमें हुए क्रमिक परिवर्तनों का अध्ययन
किया जाता है क्या कहलाता है
उत्तर:- जैव विकास
22. "प्राकृतिक चुनाव
द्वारा जीवों का विकास "------जैव विकास द्वारा, यह व्याख्या
क्या कहलाता है?
उत्तर:- डार्विनवाद
23. जीवो के वैसे अंग जो संरचना एवं
उत्पत्ति के दृष्टिकोण से एक समान होते हैं परंतु वे अलग-अलग कार्यों का संपादन
करते हैं क्या कहलाते हैं?
उत्तर:- समजात अंग
24. लुप्त हो चुके जीवों का पत्थरों पर पाए
जाने वाले चिन्ह क्या कहलाता है?
उत्तर:- जीवाश्म
25. एक ही प्रजातियों के सदस्यों के बीच
आपस में होने वाले प्रजनन को क्या कहते हैं?
उत्तर:- अंतः प्रजनन
26. फूलगोभी किस प्रकार का पुष्प है?
उत्तर:- बाह्य पुष्प (sterile
flower)
27. मानव का उद्भव स्थान मूल रूप से अफ्रीका है या एशिया?
उत्तर:- अफ्रीका
28. उद्भव के दृष्टिकोण से मानव की सबसे
करीबी सम्बन्धी कौन है?
उत्तर:- चिंपैंजी
29. आधुनिक मानव का प्राचीनतम जीवाश्म
अफ्रीका के किस स्थान से प्राप्त हुआ है?
उत्तर:- इथियोपिया
30. DNA अनुक्रम के तुलनात्मक अध्ययन द्वारा किसी जीव के पूर्वजों
की खोज क्या कहलाता है?
उत्तर:- आणविक जाति
वृत्ति
दीर्घ उत्तरीय
प्रश्न :
1. विभिन्नता क्या
है ? जननिक विभिन्नता एवं कायिक विभिन्नता का वर्णन करे |
उत्तर :- एक ही प्रकार
में जनकों से उत्पन्न विभिन्न संतानों का अवलोकन करने पर हम पाते है की उनमे
कुछ-न-कुछ अन्तर होता है | उनके रंग-रूप, शारीरिक गठन, आवाज, मानसिक क्षमता
आदि में काफी विभिन्नता होती है | एक ही प्रजाति
के जीवों में दिखने वाले ऐसी अंतर आनुवंशिक अंतर या वातावरणीय दशाओं में अंतर के
कारण होता है | एक ही जाती के विभिन्न सदस्यों में पाए जाने वाले
इन्ही अंतरों को विभिन्नता कहते है | अर्थात
विभिन्नता सजीवो के ऐसे गुण है जो उसे अपने जनको अथवा अपने ही जाती के अन्य
सदस्यों के उसी गुण के मूल स्वरूप से भिन्नता को दर्शाते है |
जननिक
विभिन्नता - इस प्रकार की विशेषताएँ जनन कोशिकाओं में होने वाले
परिवर्तन के कारण होता है | ऐसी
विभिन्नताएँ एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में वंशागत होती है | इसे आनुवांशिक
विभिन्नता भी कहते है | ऐसी
विभिन्नताओं में कुछ जन्म के समय से प्रकट हो जाती है | जैसे- आँखों
एवं बालों का रंग/शारीरिक गठन, लम्बाई में
परिवर्तन आदि जन्म के बाद की विभिन्नताएँ है |
कायिक
विभिन्नताएँ - ऐसी
विभिन्नताएँ कई कारणों से होती है | जैसे जलवायु
एवं वातावरण का प्रभाव, पोषण के प्रकार, परिवेशीय जीवों
के साथ परस्पर व्यवहार इत्यादि से ऐसी विभिन्नताएँ आ सकती है | ऐसी
विभिन्नताएँ क्रोमोसोम या जीव परिवर्तन के कारण नहीं होती है | अत ये
पीढ़ी-दर-पीढ़ी वंशागत नहीं होती है | ऐसी
विभिन्नताएँ उपार्जित होती है | इस विभिन्नता
का जैव विकास में कोई महत्त्व नहीं है |
2. मेंडल द्वारा
मटर पर किये गए एकसंकर संस्करण के प्रयोग तथा निष्कर्ष का वर्णन करें |
उत्तर :- ग्रेगर जान
मेंडल को आनुवंशिकी का पिटा कहा जाता है | मटर के पौधों
पर किये गए अपने प्रयोगों के निष्कर्षो को उन्होंने 1866 में Annual
Proceeding of the Netural Society of Brunn में प्रकाशित किया | इसने मटर जैसे
साधारण पौधे का चयन किया | मटर के पौधे के
गुण स्पष्ट तथा विपरीत लक्षणों वाले होते है | मेंडल ने
प्रयोग में विपरीत गुण वाले लम्बे तथा बौने पौधे पर विचार किया | उसने बौने पौधे
के सारे फूलों को खोलकर उनके पुंकेसर हटा दिय | फिर उसने एक
लम्बे पौधे के फूलों को खोलकर उनके परागकणों को निकालकर बने पौधों के फलों के
वर्तिकाग्रों पर गिरा दिया | मेंडल ने इन
दोनों जनक पौधों को जनक पीढ़ी कहा | इसने जो बीज
बने उनसे उत्पन्न सारे पौधे लम्बे नस्ल के हुए | इस पीढ़ी के
पौधों को मेंडल ने प्रथम सतंती कहा | इसे F1 से इंगित किया | इस F1 पीढ़ी के पौधे
में दोनों जनक (लम्बे एवं बौने ) के गुण मौजूद थे | चूँकि लम्बेपन
वाला गुण बौनेपन पर अधिक प्रभावी था | अत बौनेपन का
गुण मौजूद होने के बाबजूद पौधे लम्बे हुए | मेंडल ने लम्बे
पौधे के लिए 'T' तथा बौने के लिए 't' का प्रयोग किया
| इस तरह प्रथम पीढ़ी के सभी पौधे 'Tt' गुनेवाले हुए | इनमे 'T' (लम्बापन), 't' (बौनेपन) पर
प्रभावी था | इस कारण F1 पीढ़ी यानी प्रथम
पीढ़ी के सभी पौधे लम्बे हुए |
चूँकि दोनों
जनक पौधे शुद्ध रूप से लम्बे तथा बौने थे, इसलिए शुद्ध
लम्बे पौधों को TT तथा शुद्ध बौने पौधों को tt द्वारा सूचित
किया गया | F1 पीढ़ी के पौधों में दोनों गुण मौहुद थे, इस कारण इन्हें
संकर नस्ल कहा गया | F1 पीढ़ी के पौधों का जब आपस में प्रजनन कराया गया अगली
पीढ़ी (F1) के पौधों में लम्बे और बौने का अनुपात 3 : 1 पाया गया
अर्थात कुल पौधों में से 75 प्रतिशत पौधे
लम्बे (TT) तथा शेष संकर नस्ल के लम्बे (Tt) पौधे पैदा हुए
अर्थात संकर नस्ल के लम्बे पौधे के प्रभावी गुण (T) तथा अप्रभावी
गुण (t) के मिश्रण थे |
इस आधार पर F2 पीढ़ी के पौधों
के अनुपात 1 : 2 : 1 यानि TT, 2Tt तथा tt (एक भाग शुद्ध
लम्बे दो भाग संकर नस्ल के लम्बे तथा एक भाग शुद्ध बौने) से दर्शाया गया | 3 : 1 के अनुपात को
लक्षणप्ररुपी अनुपात तथा 1 : 2 : 1 को जीन प्ररुपी
अनुपात कहा जाता है | मेंडल इस
प्रयोग को एकसंकर संकरण कहा जाता है |
जीनप्ररुपी
अनुपात :- TT : Tt : tt = 1 : 2 : 1
लक्षणप्ररुपी
अनुपात :- लम्बा : बौना = 3:1
3. मनुष्य में
लिंग-निर्धारण के विधि का वर्णन करें |
उत्तर :- हम
जानते है की लैंगिक प्रजनन में नर युग्मक तथा मादा युग्मक के संयोजन से युग्मनज का
निर्माण होता है | जो विकसित होकर अपने जनकों जैसा नर या मादा जीव बन
जाता है | मनुष्य एक जटिल प्राणी है | इसमे लिंग
निर्धारण क्रिया को समझाने के लिए क्रोमोसोम का अध्ययन करना पड़ता है |
मनुष्य में 23 जोड़े क्रोमोसोम
होते है | इनमे 22 जोड़े क्रोमोसोम
एक ही प्रकार के होते है, जिसे आटोसोम
कहते है | तेइसवाँ जोड़ा भिन्न आकार का होता है, जिसे
लिंग-क्रोमोसोम कहते है | ये दो प्रकार
के होते है- X और Y, X क्रोमोसोम
अपेक्षाकृत बहुत छोटे आकार का होता है | नर में X और Y क्रोमोसोम
मौजूद होते है, पर मादा में Y क्रोमोसोम
लिंग-क्रोमोसोम के रूप में होते है | ये X और Y क्रोमोसोम ही
मनुष्य में लिंग-निर्धारण के लिए उत्तरदायी होते है |
ग्मकों के
निर्माण के समय X और Y अलग-अलग
युग्मकों में चले जाते है | अत नर में X और Y दो प्रकार के
युग्मक बनते है, पर मादा में केवल X क्रोमोसोम वाले
ही युग्मक बनते है | इन युग्मकों के निषेचन के फलस्वरूप नर एवं मादा
बनते है| जिस युग्मनज में X, Y दोनों
क्रोमोसोम पहुँच जाते है, वह नर (male) बन जाता है और
जिसमे दोनों लिंग क्रोमोसोम X, X पहुँच जाते है
वह मादा (female) बन जाता है | लिंग-निर्धारण
के लिए इस मत को हेटेरोगैमेसिस का सिद्धांत कहते है |
4. जैव विकास क्या है ? लामार्कवाद का
वर्णन करें |
उत्तर :- पृथ्वी पर
वर्तमान जटिल प्राणियों का विकास प्रारम्भ में पाए जानेवाला सरल प्राणियों की
परिस्थिति और वातावरण के अनुसार होनेवाले परिवर्तनों के कारण हुआ | सजीव जगत में
होनेवाले इस परिवर्तन को जैव विकास कहते है |
लामार्क फ्रांस
का प्रसिद्ध वैज्ञानिक था | इसने सर्वप्रथम
1809 में जैव विकास के अपने विचारों की अपनी पुस्तक
फिलासफिक, जूलाजिक में प्रकाशित किया | लामार्क के
सिद्धांत को उपार्जित लक्षणों का वंशागति सिद्धांत कहते है | लामार्क के
अनुसार जीवों की संरचना, कायिकी उनके
व्यवहार पर वातावरण के परिवर्तन का सीधा प्रभाव पड़ता है | लामार्क के
अनुसार वे अंग जो जीवधारियों की अनुकूलता के लिए महत्वपूर्ण है बार-बार उपयोग में
लाये जाते है, जिससे की उनका विकास होता है, लेकिन वैसे
लक्षण जो अनुकूलता की दृष्टि से महत्वपूर्ण नहीं है या हानिकारक हो सकते है उनका
उपयोग नहीं किया जाता है, जिससे वे
धीरे-धीरे नष्ट हो जाते है |
5. डार्विन के
प्राकृतिक चयन के सिद्धांत का वर्णन करें |
उत्तर :- चार्ल्स
डार्विन और वैलेस ने बाद में 'प्राकृतिक
चयानावाद का सिद्धांत दिया, जिसे डार्विन
ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक में प्रस्तुत किया | इसे स्थापित
करने में स्पेंसन (1858) नामक वैज्ञानिक ने भी योगदान दिया | डार्विन के
सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक जीवधारी में संतानोंत्पति की अद्भुत क्षमता पायी जाती
है, इसलिए एक अकेली प्रजाति पूरी पृथ्वी पेल सकती है | परिणामत आवास
और भोजन की उपलब्धता के लिए इनमे अंतप्रजातीय और अंतर्जातीय और बीच-बीच में
प्राकृतिक विपदाओं से भी संघर्ष करना पड़ता है, जिसे अस्तित्व
के लिए संघर्ष कहा जाता है | स्पेंसर (1858) के अनुसार इस
त्रिआयामी संघर्ष में सिर्फ वाही विजेता हो सकता है जिसके लक्षण अनुकूलतम हों | इस आधार पर
डार्विन ने निषकर्ष निकाला की, "प्रकृति
बार-बार परिवर्तनों के द्वारा किसी भी क्षेत्र में पाए जाने वाले जीवधारियों के
विरुद्ध एक बल उत्पन्न करती है, जिसे प्राकृतिक
चयन कहा जाता है | इसके कारण प्रतिकूल लक्षणों वाले जीवधारी नष्ट हो
जाते है और अनुकूल लक्षणों वाले जीवधारियों का परोक्ष चयन हो जाता है |" यह सिद्धांत
वास्तव में चावल चुनने के बदले कंकड़ चुनने की क्रिया है | लेकिन, प्रतिकूल लक्षण
वाले जीवधारी तुरंत मर जाते है, ऐसे बात नहीं
है: वास्तव में धीरे-धीरे उनका प्रजनन-दर घटता है और मृत्यु-दर बढ़ता है जिससे की
सैकड़ो वर्षों में ये लुप्त होते है| डार्विन को
आनुवंशिकता के कारणों का पता नहीं था, इसलिए वे
वास्तव में यह नहीं बता सकते थे की लक्षण धीरे-धीरे क्यों बदलते है | लेकिन उन्होंने
विभिन्नताएँ की पहचान की और नयी प्रजातियों की उत्पत्ति पर ठीक-ठीक प्रकाश डाला |
6. आनुवंशिक
विभिन्नता के स्रोतों का वर्णन करें |
उत्तर :- जीवों में
आनुवंशिक विभिन्नता उत्परिवर्तन के कारण होता है तथा नई
जाती के विकास में इसका योगदान हो सकता है | क्रोमोसोम पर
स्थित जीन की संरचना तथा स्थिति में परिवर्तन ही उत्परिवर्तन का कारण है | आनुवंशिक
विभिन्नता का दूसरा कारण आनुवंशिक पुनर्योग भी है | आनुवंशिक
पुनर्योग के कारण संतानों के क्रोमोसोम में जीन के गुण (संरचना तथा क्रोमोसोम पर
उनकी स्थिति ) अपने जनकों के जीव से भिन्न हो सकते है | कभी-कभी ऐसे नए
गुण जीवों को वातावरण में अनुकूलित होने में सहायक नहीं भी होते है | ऐसे स्थिति में
आपसी स्पर्द्धा, रोग इत्यादि कारणों से वैसे जीव विकास की दौड़ में
विलुप्त हो जाते है | बचे हुए जीव
ऐसे लाभदायक गुणों को अपने संतानों में संचारित करते है | इस तरह प्रकृति
नए गुणों वाले कुछ जीव का चयन कर लेती है तथा कुछ को निष्कासित कर देती है | प्राकृतिक चयन
द्वारा नए गुणों वाले जीवों का विकास इसी प्रकार से होता है |
7. पृथ्वी पर
जीवों की उत्पत्ति पर प्रकाश डालें |
उत्तर :- एक ब्रिटिश
वैज्ञानिक जे. बी. एस. हाल्डेन ने सबसे पहली बार सुझाव दिया था की जीवों की
उत्पत्ति उन अजैविक पदार्थों से हुई होगी जो पृथ्वी की उत्पत्ति के समय बने थे | सन 1953 में स्टेनल एल.
मिलर और हाल्डेन सी. डरे ने ऐसे कृत्रिम वातावरण का निर्माण किया था जो प्राचीन
वातावरण के समान था | इस वातावरण में
आक्सीजन नहीं थी | इसमे अमोनिया, मीथेन और
हाइड्रोजन सल्फाइड थे | उसमे एक पात्र
में जल भी था, जिसका तापमान 100०C से कम रखा गया
था | जब गैसों के मिश्रण से चिनगारियाँ उत्पन्न की गई जो
आकाशीय बिजलियाँ के समान थी | मीथेन से 15% कार्बन सरल
कार्बनिक यौगिक में बदल गए | इनमे एमिनो
अम्ल भी संश्लेषित हुए जो प्रोटीन के अणुओं का निर्माण करते है | इसी आधार पर हम
कह सकते है की जिवानो की उत्पत्ति अजैविक पदार्थों से हुई है |
8. जीवों में जाती
उदभवन की प्रक्रिया कैसे संपन्न होता है ?
उत्तर :- नई स्पीशीज के
उदभव में वर्त्तमान स्पीशीज के सदस्यों का परिवर्तनशील पर्यावरण में जीवित बने
रहना है | इन सदस्यों को नए प्रयावरण में जीवित रहने के लिए
कुछ बाह्य लक्षणों में परिवर्तन करना पड़ता है | अत भावी पीढ़ी
के सदस्यों में शारीरिक लक्षणों में परिवर्तन दिखाई देने लगते है | जो संभोग
क्रिया के द्वारा अगली पीढ़ी में हस्तांतरित हो जाते है परन्तु यदि दूसरी कालोनी के
नर एवं मादा जीव वर्नामान पर्यावरण में संभोग करेंगे तब उत्पन्न होने वाली पीढ़ी के
सदस्य जीवित नहीं रह सकेंगे |
इसके अतिरिक्त
अंतप्रजनन अर्थात एक ही प्रजातियों के बीच आपस में प्रजनन, आनुवंशिक विचलन
तथा प्राकृतिक चुनाव के द्वारा होनेवाले जाती उदभवन उन जीवों में हो सकते है जिनमे
केवल लैंगिक जनन होता है | अलैंगिक जनन
द्वारा उत्पन्न जीवों में तथा स्व-परागन द्वारा उत्पन्न पौधों में जाती-उद्द्भवन
की संभावना नहीं होती है |
लामार्क की यह
अवधारणा थी की परिवर्तन वातावरण के कारण जीवो के अंगों का उपयोग अधिक या कम होता
है | जिन अंगों का उपयोग अधिक होता है वे अधिक विकसित हो
जाता है | जिनका उपयोग नहीं होता है उनका धीरे-धीरे ह्रास हो
जाता है | यह परिवर्तन वातावरण अथवा जंतुओं के उपयोग पर
निर्भर करता है | इस कारण जंतु के शारीर में जो परिवर्तन होता है उसे
उपार्जित लक्षण कहा जाता है | ये लक्षण
वंशागत होते है अर्थात एक पीढ़ी से दुसरे पीढ़ी में प्रजनन के द्वारा चले जाते है | ऐसा लगातार
होने से कुछ पीढियां के पश्चात उनकी शारीरिक रचना बदल जाती है तथा एक नए प्रजाति
का विकास होता है | हालाकि लामार्कवाद के सिद्धांत का कई वैज्ञानिक ने
खंडन किया है |
No comments:
Post a Comment