पाचन तंत्र :आहारनाल , इससे संबंधित पाचक ग्रन्थियाँ और पाचक क्रिया मिलकर पाचन तंत्र (पाचन तंत्र) का निर्माण करता है।
मनुष्यों में पोषण 5 चरणों में पूर्ण होता है।

आहारनाल : यह एक कुंडलित रचना है, जिसकी लम्बाई लगभग 8 -10 मीटर तक होती है। यह मुखगुहा के शरू वाले गुदा (रेक्टम) तक फैली हुई है।
मुखगुहा:
मुखगुहा आहारनाल का पहला भाग है। यह ऊपरी और निचले जबड़े से घिरी होती है। मुखगुहा को बंद करने के लिए दो मांसल होठ (होंठ) होते हैं।
मुखगुहा के अंदर दाँत, जीभ और तीन जोड़ी लार ग्रंथिया होती है।
पाचन की क्रिया मुखगुहा से शुरू हो जाती है।
जीभ:
जीभ मुखगुहा के फर्श पर स्थित मांसल रचना है। इसकी अगली शिरा स्वतन्त्र और पिछली शिरा फर्श से जुड़ी हुई है। जीभ के ऊपरी सतह पर कई छोटे छोटे अंकुर होते हैं। जिन्हे स्वाद कलियाँ (स्वाद कलियाँ) कहती है।
जीभ का कार्य:
1. जीभ के दांतों से महींन किए गए भोजन में लार मिलती है और भोजन को निगलने में मदद करती है।
2. जीभ भोजन के स्वाद का अनुभव कराती है।
3. जीभ हमें बोलने में मदद करती है।
दाँत:
मनुष्य के जीवन काल में दो बार दाँत निकलते है। जिसे दिवदन्ती अवस्था कहती है। बचपन में निकलने वाले दन्त को दूध का दाँत कहते है। इनकी संख्या 20 होती है।
6-7 वर्ष के आयु के बच्चों के ये दाँत एक एक करके गिर जाते हैं। और उसके बाद स्थाई दाँत निकलते है। जिनकी संख्या 32 होती है। स्थाई दाँत मसूड़ों में धसे होते हैं। मनुष्य में चार प्रकार के दाँत पाए जाते है।
1. कृंतक (Incisor) : कार्य - भोजन को पकड़ना और काटना।
2. रदनक (Canine) : कार्य - भोजन को चीरना और फाड़ना।
3. अग्र चवर्णक (Pre-molar) कार्य -भोजन को चबाना।
4. चवर्णक (Molar ) : कार्य - भोजन को चबाना।
दंत सूत्र = 2123/2123 (I, C, P, M)
मनुष्य के दाँत के तीन भाग होते हैं- शिखर, ग्रीवा और जड़।
दांत के ऊपरी चमकीले भाग को इनामेल (ENAMEL) कहते हैं।
इनामेल मानव शरीर का सबसे कठोर हिस्सा होता है। इनमेल के निचे वाली परत को दंतास्थी कहते हैं।
लार ग्रंथियां:
मुखगुहा में तीन जोड़ी लार ग्रंथियां होती हैं।
१. सबमेंडिबुलर
२. सबलिंगुअल
३. पैराटिड
लार ग्रंथियों से हमेशा लारस्ररावित होता रहता है। जिसका pH- (6.5-7.5) होता है।
लार में सेलेवरि एमईलेज या टायलिन पाया जाता है जो मंड को माल्टोस (सुक्रोज ) में बदल देता है।
2. ग्रसनी
मुखगुहा का अंतिम भाग ग्रसनी कहलाता है। जिसमें दो छेद पाया जाता हैं।
१. निगल द्वार
२. कंठ द्वार
कंठ द्वार के आगे एक पट्टी जैसी संरचना होती है जिसे ऐपीग्लोटिस कहते हैं।
मनुष्य जब बोलता है, तब यह पट्टी कंठ द्वार को ढक लेती है। जिससे भोजन श्वासनली में नहीं जाता है।
ग्रासनली: -
मुख गुहा से लार से सना हुआ भोजन ग्रास नली में पहुँचता है। भोजन के पहुँचते ही, ग्रास नली के दीवारों में तरंग की तरह संकुचन या सिकुड़न और शिथिलन या फैलाव शुरू होता है जिसे क्रमाकुंचन कहते है। ग्रास नली में कोई पाचन की क्रिया नहीं होती है।
आमाशय : यह १० इंच लम्बी और ४ इंच चौड़ी थैली है। यह उदार गुहा के बायीं ओर स्थित है जठर रस स्रावित होता है।
पेप्सिन प्रोटीन को पेप्टोंस में बदल देता है।
हाइड्रोक्लोरिक एसिड (HCL): भोजन के साथ आये जीवाणुओं को नष्ट कर देता है। और माध्यम को अम्लीय बनता है।
श्लेष्मा (म्यूकस): म्यूकस आमाशय की दीवार और जठर ग्रंथियों को HCl और अन्य पेप्सिन से सुरक्षित रखता है।
आमाशय में वसा का आंशिक वसा गैस्ट्रिक लाइपेस के द्वारा होता है। यह वसा को वसा अम्ल और ग्लिसरॉल में बदल देता है।
छोटी आंत: छोटी आंत आहारनाल का सबसे बड़ा हिस्सा है। इसकी लम्बाई लगभग ६ मीटर और चौड़ाई २.५ सेमी होती है। छोटी आंत में पाचन की क्रिया पूर्ण होती है। छोटी आंत के तीन भाग होते हैं।
1.ग्रहणी 2. जेजुनम 3. इलियम
नोट: 1. मांसाहारी जंतुओं की छोटी आंत छोटी होती है। शाकाहारी जन्तुओ की छोटी आंत बड़ी होती है।
- ग्रहणी : यह छोटी आंत का पहला भाग है जो आमाशय के पाइलोरिक भाग के ठीक बाद में शुरू होता है। यह प्राथमिकता: C के आकर का होता है। ग्रहणी के लगभग बीचो बीच एक छेद के द्वारा एक नलिका में खुलती है। यह भिन्न - भिन्न दो नलिकाओं के जुड़ने से बनी हुई है।
1. अग्न्याशयी वाहिनी - 2. मूल पित्त वाहिनी
2 जेजुनम : यह ग्रहणी और इलियम के बी च का हिस्सा है।
3. इलियम : छोटी आंत का अधिकांश हिस्सा इलियम होता है। इस भाग में भोजन का अंतिम रूप से पाचन समाप्त होता है। भोजन का पाचन
नोट: यकृत से स्रावित ------- पित्त रस
अग्न्याशय से स्रावित ---- अग्न्याशय रस,
आंत ग्रंथियों से स्रावित --- आंत रस के क्रिया से होता है।
इलियाम के विलाई पचे हुए भोजन से पोषक तत्वों का अवशोषण करता है।
यकृत (लीवर) : यकृत मानव शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि है। यह उदर गुहा के दाहिने भाग में स्थित होता है। इसमें पित्ताशय होता है जिससे पित्त रस का स्राव होता है।
पित्त के कार्य:
1 पित्त आमाशय से आये हुए अम्लीय काइ म की अम्लीयता को नष्ट कर उसको अम्लीय बनता है। ताकि अग्नाशय रस के एंजाईम काइम पर क्रिया कर सके।
2 पित्त लवणों को सहायता से, भोजन के वसा का विखंडन और पायसीकरण होता है। ताकि वसा को तोड़ने वाले एंजाईम उस पर आसानी के क्रिया कर सके।
बड़ी आंत :बड़ी आंत को दो भागों में बांटा होता है। यह भाग कोलम तथा मलाशय कहलाते हैं। इसमें कोई पाचन की क्रिया नहीं होती है , केवल जल एवं खनिज लवणों का अवशोषण होता है।
अपचित भोजन रेक्टम या मलद्वार के द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है। छोटी आंत तथा बड़ी आंत के जोड़ को सिकम कहते हैं। सीकम के शीर्ष पर एक अंगुली जैसी संरचना होती है जिसका एक सिरा बंद होता है , ऐपेंडिक्स कहलाता है। यह केवल एक अवशेषी अंग है।
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